व्यवसाय
वैसे तो व्यवसाय शब्द से हम सभी परिचित है। व्यवसाय एक आर्थिक क्रिया है। जिसमें वस्तुओं का क्रिय-विक्रय क्या जाता है। वास्तविकता मे हम व्यापार को ही व्यवसाय समझते है लेकिन व्यवसाय का एक विशिष्ट अर्थ है। इस लेख मे हम व्यवसाय की परिभाषा, विशेषताएं और प्रकार के बारे चर्चा करेंगे।
व्यवसाय का अर्थ (vyavsay ka arth)
व्यवसाय एक ऐसी आर्थिक क्रिया है जिसमें लाभ कमाने के उद्देश्य से वस्तुओं और सेवाओं का नियमित रूप से उत्पादन क्रय-विक्रय विनियम और हस्तांतरण किया जाता है। व्यवसाय को हम तभी व्यवसाय कहेगें जब उसमे आर्थिक क्रियाओं मे नियमितता हो। व्यसाय मे उन सभी क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है, जिसमें वस्तुओं के उत्पादन से लेकर वितरण तक क्रियाएं की जाती है। व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए धन प्राप्त करना होता है।
व्यवसाय की परिभाषा (vyavsay ki paribhasha)
व्यवसाय की परिभाषा मैल्विवन ऐन्सन के अनुसार इस प्रकार है--
"व्यवसाय जीविकोपार्जन का तरीका होता है।
"इस प्रकार व्यवसाय में वे संपूर्ण मानवीय क्रियाएं आ जाती हैं, जो वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए की जाती है।
किंग्सले डेविस के अनुसार " व्यवसाय शब्द का अर्थ विस्तृत रूप मे निजी एवं सार्वजनिक दोनों ही संस्थाओं को संबोधित करता है जो कि एक समाज मे आर्थिक मूल्यों का विकास तथा प्रविधीकरण करती है।
व्यवसाय की मुख्य विशेषताएं (vyavsay ki visheshta)
1. व्यवसाय एक मानवीय आर्थिक क्रिया है।
2. प्रत्येक व्यवसाय को समाज और राज्य द्वारा मान्यता प्रदान की जाती है।
3. व्यवसाय लाभ को ध्यान मे रखकर किया जाता है।
4. व्यवसाय में व्यवसाय करने वाले को जोखिम उठाना पड़ सकता है।
5. व्यवसाय के लिए व्यवसायी मे साहस और धैर्यें होने चाहिए।
6. व्यवसाय सिर्फ लाभ के लिए ही नही होता, वरन् दोनों पक्षों के पारस्परिक हित के लिए भी होता है।
7. व्यवसाय में वस्तुओं का उत्पादन, विनिमय, वितरण आदि क्रिया सम्मिलित होती है।
8. व्यवसाय में आर्थिक क्रियाओं में नियमितता होना अनिर्वाय है।
9. व्यवसाय की सभी क्रय पुनः विक्रय के उद्देश्य से ही की जाती है।
10. व्यवसाय की सभी क्रियाएं राष्ट्र के नियम और कानूनों के मुताबिक ही होती है।
11. उपयोगिता का सृजन करना एवं सृजन में मदद देना दोनों ही व्यवसाय है।
12. व्यवसाय मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए की जाने वाली आर्थिक क्रिया है।
13. व्यवसाय को तभी व्यवस्या कहा जायेगा जब आर्थिक क्रियाओं मे नियमितता हो अर्थात् एक बार किसी वस्तु का विक्रय करना व्यवसाय करना व्यवसाय नही है।
14. वस्तुओं का उत्पादन, विनिमय वितरण इस क्रिया मे सम्मिलित होता हैं।
15. व्यवसाय व्यक्ति की मनोवृत्ति को निर्धारित करता है।
व्यवसाय के प्रकार (vyavsay pirakary)
डाॅ. डी. खुल्लर के आर्थिक क्रियाओं के आधार पर व्यवसाय चार प्रकार बतायें हैं----
1. प्राथमिक क्रियाकलाप
जिन क्रियाओं मे मनुष्य प्रकृति प्रदत्त संसाधनो का सीधा उपयोग करता है और अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करता है वे सभी क्रियाकलाप प्राथमिक क्रियाकलाप कहलाएँगे। इनसे प्राथमिक व्यवसाय की श्रेणी का निर्धारण होता है। प्राथमिक क्रियाकलाप के उदाहरण हैं, वनो से संग्रह, शिकर करना, लकड़ी काटना, पशुपालन, मछली पालन, कृषि कार्य आदि।
2. द्दितीयक क्रियाकलाप
द्दितीयक क्रियाकलापों मे कृति प्रदत्त संसाधनो का सीधा उपयोग नही किया जाता। बल्कि प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं को परिष्कृत कर उपयोग मे लाया जाता है। जैसे गेहूँ से आटा, कपास से सूत बनाना, लोहे से इस्पात, लकड़ी से फर्नीचर आदि। द्वितीय व्यवसाय की यह अवस्था औधोगिक विकास की अवस्था होती है।
3. तृतीयक क्रियाकलाप
तृतीयक क्रियाकलाप मे समुदाय को दी जाने वाली सेवाओं से संबंधित क्रियाकलाप आते है। जीवन के विविध क्षेत्रों से जुड़ी सेवाएं जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन, संचार, व्यापार, यातायात इत्यादि। इन्हें तृतीयक व्यवसाय कि श्रेणी मे रखा जा सकता हैं।
4. चतुर्थक क्रियाकलाप
चतुर्थक क्रियाकलाप एक अन्य तरह का क्रियाकलाप है जिससे संबंधित सेवाओं को चतुर्थक व्यवसाय के अंतर्गत रखा जा सकता है। उदाहरण के लिए शोध कार्य, वैज्ञानिक, कलाकार, नेतृत्व, वकालत आदि।