✍ यह लघुपाषाण काल ( 30,000 ईसा पूर्व ) और प्रारंभिक ऐतिहासिक ( 600 ईसा पूर्व ) युग के मध्य का एक महत्त्वपूर्ण स्थल है । इसकी खोज प्रोफेसर राजन ने 1990 के दशक में की थी ।
✍ इस स्थल के 10 किमी . के दायरे में कई अन्य पुरातात्त्विक स्थल जैसे- तोगरापल्ली , गंगावरम , संदूर , वेदारथट्टक्कल , गुहूर , गिदलुर , कप्पलवाड़ी भी अवस्थित हैं ।
✍ इस नवीनतम खोज से पहले , तमिलनाडु में लोहे के उपयोग का प्राचीनतम साक्ष्य मेट्टूर के पास थेलुंगनूर और मंगडु से प्राप्त हुआ था , जो 1500 ईसा पूर्व का है जबकि भारत में लोहे के उपयोग का प्राचीनतम प्रमाण 1900-2000 ईसा पूर्व का माना जाता था ।
✍ ध्यातव्य है कि सिंधु घाटी में लोहे का उपयोग नहीं किया गया है । जब लोहे की तकनीक का आविष्कार हुआ , तो इसने कृषि उपकरणों और हथियारों का उत्पादन में योगदान दिया जिससे आर्थिक और सांस्कृतिक प्रगति को बल मिला ।
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