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अनुच्छेद 99 के बारे में  खबरों में क्यों? संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के खतरों को संबोधित करने के लिए संयुक्त ...

आज का सामान्य ज्ञान🎊

भारत की अदालतों में लाखों केस पेंडिंग हैं. ऐसे में कई गंभीर मामलों की सुनवाई शुरू होने में ही सालों का वक्त लग जाता था. फास्ट-ट्रैक कोर्ट का मकसद है कम से कम समय में पीड़ित पक्ष को कानूनी मदद उपलब्ध कराना. और जल्द से जल्द इंसाफ दिलवाना।

साल 2000 में 11वां फाइनेंस कमीशन बना. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी प्रोफेसर सैयद अली मोहम्मद खुसरो इसके चेयरमैन थे. कमीशन ने अदालतों में पेंडिंग मामलों को निपटाने के लिए 1734 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की राय दी. फाइनेंस मिनिस्ट्री ने इसके लिए 502.90 करोड़ रुपये जारी किए. ये पैसे सीधे राज्य सरकारों के पास भेजे गए. ताकि वो अपने यहां के हाईकोर्ट से सलाह-मशविरा करके फास्ट-ट्रैक कोर्ट बना सकें और लटके पड़े मामलों को जल्द से जल्द खत्म करें. ये फंड पांच साल के लिए जारी किया गया था. उम्मीद थी कि 5 साल में पेंडिंग मामलों का निपटारा कर लिया जाएगा। 

31 मार्च, 2005 को फास्ट-ट्रैक कोर्ट का आखिरी दिन था. उस वक्त 1562 फास्ट-ट्रैक अदालतें काम कर रही थीं. सरकार ने इनको जारी रखा. 5 साल का वक्त और दिया. 509 करोड़ की राशि भी दी. 2010 में इनका कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया गया। 

2011-12 में केंद्र से मिलने वाला सहयोग बंद होने वाला था. 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि राज्य सरकारें फास्ट-ट्रैक कोर्ट चलाने या बंद करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हैं. केंद्र सरकार ने 2015 तक फास्टट्रैक कोर्ट चलाने के लिए मदद देने का फैसला किया. केंद्र ने जजों की सैलरी के लिए सालाना 80 करोड़ देने का फैसला किया। 

📌"कैसे काम करते हैं फास्ट ट्रैक कोर्ट?"
👉🏻 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने का फैसला उस राज्य की सरकार हाई कोर्ट से चर्चा के बाद करती है। 

👉🏻 हाई कोर्ट फास्ट ट्रैक कोर्ट के लिए टाइमलाइन तय कर सकता है कि सुनवाई कब तक पूरी होनी है. टाइमलाइन के आधार पर फास्ट ट्रैक कोर्ट तय करता है कि मामले को हर रोज़ सुना जाना है या कुछ दिनों के अंतराल पर। 

👉🏻 सभी पक्षों को सुनने के बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट तय टाइमलाइन में अपना फैसला सुनाता है। 

📌"क्या हैं फास्ट ट्रैक कोर्ट के फायदे?"
👉🏻 फास्ट ट्रैक कोर्ट की डिलीवरी रेट काफी तेज़ है। 

👉🏻 इससे सेशन कोर्ट्स में आने वाले मामलों का बर्डन कम हुआ है। 

👉🏻कई मामलों में फास्ट-ट्रैक कोर्ट ने हफ्ते के अंदर भी दोषियों को सजा सुनाई है। 

फास्ट ट्रैक अदालतों में फैसला आ जाने के बाद भी मामले सालों तक ऊपरी अदालतों में अटके रहते हैं. 2012 का दिल्ली गैंगरेप-मर्डर केस इसका बड़ा उदाहरण रहा है।

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