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KHARAI CAMEL

●Name origin: From Gujarati “Khara” (saline) — denotes its adaptation to saline desert–coastal ecosystems. ●Unique feature: Only camel breed...


> दो जून की रोटी, वैसे तो यह एक साधारण सा मुहावरा है, लेकिन इसका जून माह से कोई संबंध नहीं।
> यह भी अपुष्ट है कि यह कब और कहां से प्रचलित हुआ, लेकिन इसका शाब्दिक अर्थ कुछ अलग ही है। 
> बचपन में पढ़ी गई किताबों में हमने ऐसे-ऐसे मुहावरे पढ़े जिनका अर्थ जीवन की गहराइयों तक जाता है। ऐसा ही एक मुहावरा दो जून की रोटी भी है।
> विक्रम विवि के कुलानुशासक शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि यह भाषा का रूढ़ प्रयोग है। 
> मोटे तौर पर माना जाए तो यह करीब 600 साल पहले से प्रचलन में है।
> किसी घटनाक्रम की विशेषता बताने के लिए मुहावरों को जोड़कर प्रयोग में लाया जाता था। यह क्रम आज तक जारी है। 
> हास्य-व्यंग्य के अंतरराष्ट्रीय कवि दिनेश दिग्गज से पूछा गया कि हम दो मार्च या दो अप्रैल की रोटी क्यों नहीं कहते, उन्होंने कहा- क्योंकि दो जून की रोटी का अर्थ कोई महीना नहीं, बल्कि दो समय (सुबह-शाम) का खाना होता है।
> साधारण शब्दों में इसका अर्थ कड़ी मेहनत के बाद भी लोगों को दो समय का खाना नसीब नहीं होना, होता है।
> संस्कृत विद्वान शास्त्री कौशलेंद्रदास ने बताया कि दो जून अवधि भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ वक्त या समय होता है। इससे ही यह कहावत अस्तित्व में आई है।

2 जून की रोटी का अर्थ, जून महीने से नहीं जुड़ा है. जानिए क्या है इसका असल मतलब...

जून का महीना आते ही लोगों को दो चीजों की याद सबसे ज्यादा आती है, एक तो बेहाल करने वाली गर्मी से बचाने के लिए बारिश की, और दूसरा, ‘2 जून की रोटी’ की! आपने अक्सर लोगों से दो जून की रोटी के बारे में सुना होगा. कोई मजाक में कहता है तो कोई सीरियस होकर, पर क्या आप वाक्य का अर्थ जानते हैं? मीम्स में भी दो जून का काफी प्रचलन है, लोग इसके जुड़े फनी पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयर भी करते हैं. इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर ‘दो जून की रोटी’ का अर्थ क्या होता है! और इसे लेकर इतने मीम क्यों बनते हैं..??

जिस ‘जून’ को हम महीने के तौर पर जानते हैं, उसे अवधी भाषा में ‘वक्त’ के रूप में जाना जाता है. तो दो जून की रोटी का अर्थ हुआ, "दो वक्त की रोटी". यानी सुबह और शाम का भोजन. जब किसी को दोनों वक्त का खाना नसीब हो जाए तो उसे दो जून की रोटी खाना कहते हैं और जिसे नहीं मिलता उसके लिए कहा जाता है कि दो जून की रोटी तक नहीं नसीब हो रही है! वाकई ये रोटी सिर्फ किस्मत वालों को मिलती है और अगर आप उनमें से एक हैं तो आपको परमात्मा का शुक्रगुजार होना चाहिए.

>> दो जून की रोटी' के क्या हैं मायने <<

दरअसल 'दो जून की रोटी' एक मुहावरा है, जिसका अर्थ है कि दिनभर में आपको दो टाइम का खाना मिल जाना. माना जाता है कि जिस शख्स को दो टाइम का खाना मिल रहा है, वह किस्मतवाला है. क्योंकि कई लोगों को मेहनत करने के बावजूद दो टाइम का खाना तक नसीब नहीं हो पाता है. अब इसके इतिहास की जानकारी तो नहीं लेकिन इसका शाब्दिक अर्थ यही निकाला जाता है. 

>> इतिहासकारों ने भी किया है रचनाओं में जिक्र <<

बड़े-बड़े इतिहासकारों ने दो जून की रोटी का जिक्र अपनी रचनाओं में किया है. प्रेमचंद से लेकर जयशंकर प्रसाद तक ने इस कहावत को अपनी कहानियों में शामिल किया. महंगाई के दौर में अमीर तो भर पेट खाना खा लेते हैं, पर गरीबों के लिए दो जून की रोटी भी नहीं नसीब है. आपने इस तरह के वाक्य अक्सर कहानियों या खबरों में पढ़े होंगे. इसमें भी जून महीने से नहीं, बल्कि दो वक्त के खाने से ही मतलब है.

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