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अनुच्छेद 99 के बारे में  खबरों में क्यों? संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के खतरों को संबोधित करने के लिए संयुक्त ...

सरकारी नौकरी कोई भी हो,आज सिस्टम में सबसे पीड़ित
वर्ग हैं तो आप के मन में बस एक ही नाम कौंधेगा.... वो है *शिक्षक*... और उसमें भी *बेसिक का शिक्षक*। इस वर्ग के शिक्षक का कोई माई बाप नहीं हैं, व यह वर्ग न केवल सरकारी तंत्र द्वारा अपितु समाज द्वारा भी लगातार शोषित किया जाता है। समाज की दृष्टि में एक शिक्षक को मुफ्त की तनख्वाह प्राप्त करने वाला नकारा इंसान माना जाता है जो सुबह को विद्यालय आकर दोपहर को घर मजे मार के वापस लौट जाता है.. छोटे से समय की नौकरी करता हैं... काम कुछ नहीं है... मात्र अ, आ भी नही पढा सकता आदि आदि...

चलिए आज इसी नकारा व्यक्ति की तुलना अन्य कर्मठ व्यक्तियों / विभाग से करते हैं। 

तथ्य 1- बेसिक का शिक्षक प्रातः 9.00 बजे के विद्यालय होने पर अमूमन 8.45 तक विद्यालय उपस्थित हो जाता है। जबकि कभी किसी सरकारी अस्पताल, तहसील, PWD दफ्तर, यहां तक कि किसी सरकारी बैंक में 10 बजे का ऑफिस होने पर भी 11.00 बजे से पूर्व कोई कर्मठ व्यक्ति कार्य करता हुआ नजर नहीं आता।

तथ्य 2- कहने को बेसिक का मास्टर मोटी सेलेरी पाता हैं, जबकि यदि उनके सेलेरी खाते की CBI जांच कराई जाए तो उस पर किसी न किसी बैंक का लोन मिलता हैं। जबकि एक पुलिस कर्मी / तहसील स्तर का कर्मचारी / बेसिक विभाग का बाबू / PWD दफ्तर का कर्मचारी / ग्राम विकास अधिकारी... आदि-आदि जोकि गरीबी रेखा से नीचे का जीवन यापन करने को मजबूर हैं, के पास आलीशान गाड़ी, बंगला, बैंक बैलेंस मिलता है।

तथ्य 3- बेसिक का शिक्षक जो दिन भर खाली बैठकर तनख्वाह प्राप्त करता है, जिसे तहसील वालो का BLO कार्य, बैंक कर्मियों का DBT कार्य, स्वास्थ्य विभाग का टीकाकरण, पटवारियों की जिंदा /मरे की गणना पुष्टहार विभाग का MDM, क्लर्क का अभिलेखीकरण, सफाई विभाग का कार्य, अभिनय / चलचित्र विभाग की नुक्कड़ नाटक मंडली.....सभी करता है जबकि किसी भी विभाग का कर्मठ कर्मचारी कोई भी अतिरिक्त कार्य नहीं करता तो फिर बेसिक का शिक्षक नकारा कैसे ?

तथ्य 4- बेसिक शिक्षा विभाग का मास्टर गर्मियों में 45 दिन की छुट्टियां मारकर फीकी सेलेरी लेता हैं, जोकि शायद इस वर्ग पर जबरदस्ती थोपी गयी छुट्टियां हैं। जबकि कर्मठ सभी विभाग 45 से अधिक श्वरु वर्ष के समस्त द्वितीय शनिवार, अतिरिक्त कार्य करने पर अतिरिक्त भत्ते आदि-आदि उपभोग करने के बाद भी मेहनत की सेलेरी पाते हैं। ऐसे बहुत से सत्य तथ्य हैं जिनको जानते सब हैं किंतु सहस्र स्वीकार नहीं करना चाहते।



बेसिक शिक्षा परिषद के हरेक विद्यालय में पूर्ण योग्य शिक्षक शिक्षण कराते हैं जो एक- आध परीक्षा देकर नहीं अपितु कई-कई परीक्षा पास करके इस पद पर नियुक्त हुआ है प्रदेश में अन्य ऐसा कोई विभाग नही जहां इतने योग्य लोग चयनित किये गए हो। किन्तु विडम्बना यह हैं कि हमे हर समय परीक्षा देनी पड़ती है।

जहाँ शिक्षा नीति कहती हैं कि उम्र के हिसाब से बच्चे को कक्षा में प्रवेश दिया जाए चाहे उसकी बुद्धि-लब्धि, शैक्षिक स्तर कितना भी निम्न क्यो न हो, किसी भी बच्चे को आप उसी कक्षा में नहीं रोक सकते चाहे उसका शैक्षिक स्तर निम्न ही क्यो न रहा हो......

कभी *हिंदी मीडियम* फिल्म देखो तब पता चलेगा सरकारी मास्टर क्या होता जो प्राइवेट से कैसे बेहतर हो सकता

और उसके तुरन्त बाद असली परीक्षा आती है शिक्षक की.... गुणवत्ता रूपी राक्षस की....जिसके नाम पर बेसिक शिक्षक को न केवल दंडित किया जाता हैं, बल्कि समाचार पत्रों में मजेदार शीर्षक के साथ उसका व्याख्यान किया जाता है, किन्तु विभाग में आये दिन विद्यालय के समस्त स्टाफ को BLO, विभिन्न गणनाओं आदि के कार्यों में बिना उसकी इच्छा से एक लंबे समय के लिए झोंक दिया जाता है उसके पश्चात तहसील स्तर के किसी संविधाकर्मी / चतुर्थ कर्मचारी द्वारा उसे फोन करके आये दिन तहसील बुलाकर प्रताड़ित किया जाता है। ऐसे में गुणवत्ता कैसे मिले ?..... मेरा समाज से प्रश्न अध्यापक शिक्षण के लिए है या वोट बनाने के लिए?.......जवाब आपका......

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